LEADER |
02766nam a22003377a 4500 |
001 |
0047449 |
041 |
|
|
|a ara
|
100 |
|
|
|9 373420
|a الشمري، محمد بن عنيف
|e مؤلف
|
245 |
|
|
|a قاعدة "يغتفر في الدوام ما لا يغتفر في الابتداء" وتطبيقاتها الفقهية في الاحوال الشخصية
|
260 |
|
|
|a عمان
|c 2015
|
300 |
|
|
|a 1 - 119
|
336 |
|
|
|a رسائل جامعية
|
502 |
|
|
|b رسالة ماجستير
|c الجامعة الاردنية
|f كلية الدراسات العليا
|g الاردن
|o 11387
|
520 |
|
|
|a تهدف هذه الدراسة إلى إثبات أن "قاعدة يغتفر في الدوام ما لا يغتفر في الابتداء" يمكن إعمالها في باب الأحوال الشخصية. وقد تضمنت هذه الدراسة على فصل تمهيدي وأربعة فصول وكل فصل احتوى على مباحث. وقد توصل الباحث إلى أن قاعدة "يغتفر في الدوام ما لا يغتفر في الابتداء"، تعني أن الشرع الإسلامي يتسامح ويتساهل في دوام الأمر واستمراره، ما لا يتسامح فيه ابتداء، وأن ما كان ممتنعا على المكلف فعله ابتداء يتسامح الشرع فيه امتدادا واستمرارا لسبق وجوده، وذلك من أجل المحافظة على العقود وسلامتها من الانفساخ، وسواءا أكانت هذه العقود متعلقة في الأحوال الشخصية أم بغيرها من العقود، ويدل هذا على يسر الشريعة الإسلامية، وأنها تقوم على رفع الحرج عن المكلفين.
|
653 |
|
|
|a الفقه الاسلامي
|a اصول الفقه
|a القواعد الفقهية
|a الاحوال الشخصية
|
700 |
|
|
|a عقل، ذياب عبدالكريم ذياب
|g Akel, Zeyab Abed-Al-Kareem
|e مشرف
|9 425497
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-T.pdf
|y صفحة العنوان
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-A.pdf
|y المستخلص
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-C.pdf
|y قائمة المحتويات
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-F.pdf
|y 24 صفحة الأولى
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-0.pdf
|y الفصل التمهيدي
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-1.pdf
|y 1 الفصل
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-2.pdf
|y 2 الفصل
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-3.pdf
|y 3 الفصل
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-4.pdf
|y 4 الفصل
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-O.pdf
|y الخاتمة
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-R.pdf
|y المصادر والمراجع
|
856 |
|
|
|u 9802-001-008-11387-S.pdf
|y الملاحق
|
930 |
|
|
|d y
|
995 |
|
|
|a Dissertations
|
999 |
|
|
|c 716803
|d 716803
|